सितंबर का महीना धान की फसल के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस महीने में धान की फसल में कई तरह के रोग और कीट लग सकते हैं। इन रोगों और कीटों से फसल को बहुत नुकसान हो सकता है। इसलिए, सितंबर के महीने में धान की फसल की देखभाल करना बहुत जरूरी है।
इस लेख में, हम धान की फसल में सितंबर के महीने में लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों और कीटों के बारे में चर्चा करेंगे।
धान की फसल में लगने वाले रोग
धान का तना गला रोग: यह रोग धान की फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाता है। यह रोग धान के तने को अंदर से गला देता है, जिससे तना कमजोर हो जाता है और फसल गिर जाती है। इस रोग से बचाव के लिए, धान की फसल में नीम का तेल या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करना चाहिए।
धान का झुलसा रोग: यह रोग धान के पत्तों पर होता है। इस रोग से पत्ते पीले पड़ जाते हैं और झुलस जाते हैं। इस रोग से बचाव के लिए, धान की फसल में मोनोक्रोटोफॉस या मेटालैक्सिल का छिड़काव करना चाहिए।
धान का पत्ती का धब्बा रोग: यह रोग धान के पत्तों पर होता है। इस रोग से पत्तों पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। इस रोग से बचाव के लिए, धान की फसल में कार्बेंडाजिम या मैन्कोजेब का छिड़काव करना चाहिए।
धान का चित्ती रोग: यह रोग धान के पत्तों पर होता है। इस रोग से पत्तों पर छोटे-छोटे चित्ती पड़ जाते हैं। इस रोग से बचाव के लिए, धान की फसल में मैन्कोजेब या डाइथेन एम 45 का छिड़काव करना चाहिए।
धान का झुंडी रोग: यह रोग धान के पौधे के फूलों को संक्रमित करता है। इस रोग से फूलों में झुंडियां बन जाती हैं और पौधे की बढ़वार रुक जाती है। इस रोग से बचाव के लिए, धान की फसल में मेटालैक्सिल या कापर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करना चाहिए।
धान की फसल में लगने वाले कीट
धान का कीट: यह कीट धान की फसल को बहुत नुकसान पहुंचाता है। यह कीट धान के पत्तों को खाता है, जिससे पत्ते पीले पड़ जाते हैं और झुलस जाते हैं। इस कीट से बचाव के लिए, धान की फसल में मैलाथियान या डाइमेथोएट का छिड़काव करना चाहिए।
धान का थ्रिप: यह कीट धान के फूलों को खाता है, जिससे फूलों में झुंडियां बन जाती हैं और पौधे की बढ़वार रुक जाती है। इस कीट से बचाव के लिए, धान की फसल में नोवाक्लोर या इमिडाक्लोप्रिड का छिड़काव करना चाहिए।
धान का मकड़ी का जाला: यह कीट धान की फसल में जाले बनाता है और धान के पत्तों को खाता है। इस कीट से बचाव के लिए, धान की फसल में डाइमेथोएट या मैलाथियान का छिड़काव करना चाहिए।
धान की सूंडी: यह कीट धान के पौधे के तने को खाता है, जिससे तना कमजोर हो जाता है और फसल गिर जाती है। इस कीट से बचाव के लिए, धान की फसल में डाइमेथोएट या मैलाथियान का छिड़काव करना चाहिए।
धान का सुंडी: यह कीट धान के पौधे के फूलों को खाता है, जिससे फूलों में झुंडियां बन जाती हैं और पौधे की बढ़वार रुक जाती है। इस कीट से बचाव के लिए, धान की फसल में डाइमेथोएट या मैलाथियान का छिड़काव करना चाहिए।
रोकथाम के उपाय
- धान की खेती के लिए स्वस्थ बीज का इस्तेमाल करें। स्वस्थ बीज का इस्तेमाल करने से रोगों और कीटों का खतरा कम हो जाता है।
- धान की फसल में समय-समय पर निराई-गुड़ाई करें। निराई-गुड़ाई से खरपतवारों को हटाने में मदद मिलती है, जो रोगों और कीटों के प्रसार का कारण बन सकते हैं।
- धान की फसल को सूखे और ठंड से बचाएं। सूखे और ठंड से धान की फसल को नुकसान हो सकता है, जिससे रोगों और कीटों का खतरा बढ़ जाता है।
- धान की फसल में उचित जल निकास व्यवस्था रखें। खराब जल निकास व्यवस्था से धान की फसल में रोगों और कीटों का खतरा बढ़ जाता है।
- धान की फसल में रोगों और कीटों के नियंत्रण के लिए उचित उपाय करें। रोगों और कीटों के नियंत्रण के लिए कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन यह ध्यान रखना जरूरी है कि कीटनाशकों का इस्तेमाल सही मात्रा में और सही समय पर किया जाए।
निष्कर्ष
सितंबर का महीना धान की फसल के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस महीने में धान की फसल में कई तरह के रोग और कीट लग सकते हैं। इन रोगों और कीटों से फसल को बहुत नुकसान हो सकता है। इसलिए, सितंबर के महीने में धान की फसल की देखभाल करना बहुत जरूरी है।
उम्मीद है कि इस लेख से आपको धान की फसल में सितंबर के महीने में लगने वाले रोगों और कीटों के बारे में जानकारी मिली होगी।
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